Tuesday, December 9, 2014
Saturday, November 29, 2014
गाय के दूध से रोगों का नाश
गाय के दूध से रोगों का नाश
गाय के दूध में घी और सक्कर मिलाकर पीने से बदन में ताकत आती है | बल वीर्य और पुरषवार्थ इतना बढ़ता है की लिख नहीं सकते |
आँखों की जलन में गाय के दूध की पट्टियाँ रखकर ऊपर फिटिकरी बुरक देने से जलन बंद हो जाती है | ४ -६ दिन ऐसा करना चाहिए |
गौ दूध मंदी मंदी अग्नि पर गरम करके गरम गरम पीने से हिचकियाँ दूर होजाती हैं |
गाय के दूध में बादाम की खीर बनाकर ३ -४ दिन खाने से आधा शीशी या आधे सर के दर्द में आराम हो जाता है |
गाय के दूध में सोंफ घिसकर गाड़ा लेप सिर पर करने से सिर दर्द में आराम होता है
Monday, November 24, 2014
गौ
गाय विश्व की माता है | भारतीय संस्क्रति का मूल स्रोत वेद है |जो ब्रम्हा के दवारा रचित है |वेद शाश्वत है | आयुर्वेद का वर्णन वेदों में ही आता है |स्वास्थ्य का अर्थ शारीरिक ,मानसिक और आत्मिक सुख से है | ये तीनों केवल गाय से ही संभव है |जो लोग गौ पालन करते हैं वो गाय के दूध और गौ मूत्र का आयुर्वेद के अनुसार प्रयोग करके स्वयं को स्वस्थ्य रख सकते हैं |दिल से अगु माता की सेवा करके मानसिक आत्मिक शान्तिप्राप्त कर सकते हैं | लेकिन ये सब गाय बचेगी तो ही संभव होगा |इसलिए ही आप सभी से निवेदन है की हमें गौ सेवा गौ के लिए नहीं बल्कि स्वयं के लिए करनी चाहिए |
गौ रख्या गाय को केवल पूज्यनीय बताकर ही नहीं कीजासक्ति है उसके लिए हमें गौ पलकों को गौ को आर्थिक द्रस्टी से उपयोग बताने होंगे
गाय कामधेनु रूप में सर्व सुख देती है |अगु वंश गोपालक के घर पैदा होता है |गौ पालक आज आर्थिक द्रस्टी से से महत्व देने लगा है| उसका एक कारन गौ चर भूमियों का नष्ट होजा भी है |
जो उसे आर्थिक सोच में लाया है |बछड़ा ,बछड़ी दूध देने तक वह पालन पोषण करता ही है |अर्थ लाभ लेता है परन्तु यह लाभ प्राप्त न होने पर वह उसे किसी प्रकार से बहुत सस्ते मूल्य में बेच देता है |ऐसा गौ वंश क़त्ल खाने पहुंच कर अति क्रूरता से मारा जाता है
अतएव क़त्ल खाने में न पहुंच सके तथा ग्राम ग्राम घर घर में ही आजन्म प्रतिष्ठित हो जाये |इस के लिए "पञ्चगब्य " में वर्णित महत्त्व से गौमूत्र व गोमय की अौषधि जानकारी सरल रीति देना इस महापाप से राष्ट को बचाना है |
गौ रख्या गाय को केवल पूज्यनीय बताकर ही नहीं कीजासक्ति है उसके लिए हमें गौ पलकों को गौ को आर्थिक द्रस्टी से उपयोग बताने होंगे
गाय कामधेनु रूप में सर्व सुख देती है |अगु वंश गोपालक के घर पैदा होता है |गौ पालक आज आर्थिक द्रस्टी से से महत्व देने लगा है| उसका एक कारन गौ चर भूमियों का नष्ट होजा भी है |
जो उसे आर्थिक सोच में लाया है |बछड़ा ,बछड़ी दूध देने तक वह पालन पोषण करता ही है |अर्थ लाभ लेता है परन्तु यह लाभ प्राप्त न होने पर वह उसे किसी प्रकार से बहुत सस्ते मूल्य में बेच देता है |ऐसा गौ वंश क़त्ल खाने पहुंच कर अति क्रूरता से मारा जाता है
अतएव क़त्ल खाने में न पहुंच सके तथा ग्राम ग्राम घर घर में ही आजन्म प्रतिष्ठित हो जाये |इस के लिए "पञ्चगब्य " में वर्णित महत्त्व से गौमूत्र व गोमय की अौषधि जानकारी सरल रीति देना इस महापाप से राष्ट को बचाना है |
Tuesday, June 10, 2014
भंडारा प्रशाद
भंडारा प्रशाद
आज आप सरे देश के धार्मिक
खेत्रों में जहाँ भी जाओगे आपको वहां भंडारे ही भंडारे लगे दिखाई देंगे कही पूरी छोले
कही राजमा चावल कही कुछ कहीं कुछ एक से एक
स्वादिस्ट भोजन आपको भंडारों में मिल जायेगा
|
इससे हम और आप क्या
समझे की लोग इतनी संख्या में सेवा भावी हो गए हैं की आपने किसी भी तरह के कर्मो के
द्वारा अर्जित दान का सदुपयोग कर रहे हैं, भूके को भोजन देर हे हैं प्यासे को पानी
पिला रहे ,दारिद नारायण की सेवा कर रहे हैं या कुछ और |
में ऐसे सेवा भावी
मित्रों से पहले निवेदन करना चाहूंगा की मुझ मूर्ख के शब्दों से उन्हें पीड़ा हो तो
में उनसे ख्यामा चाहता हूँ |
मेरी समझ से न तो ऐसे
लोग समाज की सेवा कर रहे हैं और न ही आपने परलोक को सवारने के लिए कोई पुण्य कम रहे
हैं ये ऐसे ही कमाया धन ऐसे ही जा रहा है और कम रहे हैं तो केवल पाप |
हमारे यहाँ गिर्राज
जी में प्रति दिन अनेकों भंडारे लगते हैं मगर उनमे से भंडारा कोई नहीं होता |
१-इसमें कुछ लोग ऐसे
होते हैं की उनके पडोसी ने कही भंडारा लगा तो उन्हें भी लगन क्युकिँ उनके पडोसी को
लोग पैसे वाला ,समाज सेवी धार्मिक कहने लगे हैं , समाज में रुतवा है तो में भी आपने
रुतबा बनाऊंगा श्रदा बिलकुल न हीं है, ऐसे ही कुछ लोग तो केवल झूठी प्रतिस्प्रदा में
रहे हैं |
२-कुछ मुहल्लों में
मुकाबला होता है एक मोहल्ले वाले प्रसाद बाँट के आये हैं तो हम भी बनते है |
३-कुछ संस्थाओं में
भी भंडारा करके आगे निकलने की होड़ लगी होती है उस समिति ने पूरी सब्जी बँटी तो हम साथ
में हलवा भी बाँटेंगे |
४- कुछ धार्मिक िस्थलों
पर पण्डे ,पुजारी ,और धर्मशाला संचालकों के रूप में ठेकेदार होते हैं जो उसमे से कमीशन
कमा कर अपनी कमाई करते हैं और लोगों को भंडारे लगाने को प्रेरित करते हैं |
जरा विचार करे :
अन्न दान सबसे सुन्दर
दान है कब जब आप किसी ऐसे मनुष्य को भोजन कराते हो जो भूखा है उसके पास सायद आज भोजन
का कोई साधन नहीं है |
दुसरे यदि आप की कोई
मनोकामना पूरी हुई है और आपने बरीब ,साधु ब्राहम्मण को भोजन करने की बोल रखा है तो
वह भोजन बड़े आदर से उदार ह्रदय से आसान पर बिठा कर कराया जाता है | न की एक टेवल लगाकर
भीख की तरह बाटा जाता है आब कुछ लोग कहेंगे की हम तो प्रशाद बाँट ते है आब आप ही विचार करे की प्रशाद का क्या महत्व है
प्रशाद बड़ी श्र्दा से दिया जाता है और श्र्दा
से ही लिया जाता है अगर प्रशाद का एक किनका मात्र भी पैरों में गिरजाये तो भरी पाप
लगता है भगवान के प्रशाद की महिमा भगवान से किसी भी तरह काम नहीं है |
मित्रो वाही प्रशाद
हमारे सामने ही पैरों पड़ा दिखाई देता है हम देखते है की लोग दोना हाथ में लेते हैं
और जरासा चख कर फेंक देते
इससे आपको नहीं लगता
की हम पुण्य कम रहे हैं या पाप विचार करो और दुसरे जो फेंक रहे है उनको जबरन प्रशाद
देकर उन्हें भी पाप का भागी बना रहे है साथ ही धाम में गंदगी करके धाम का अपराध कर
रहे हैं |
कुछ ऐसे सज्जन भी होंगे
की जी हमें तो भंडारा ही लगानाहै हो सकता है उनकी कोई मजबूरी हो तो में ऐसे लोगों से
निवेदन करना चाहूंगा की वो पत्तल पर बिठा कर प्रशाद पवा में यदि वो कहते हैं, की हमें
तो प्रशाद बाँटना ही है तो वे सूखा प्रशाद बांटें जिससे ब्यक्ति खाए तो खाए नहीं तो
घर ले जाये जिससे प्रशाद पैरों न गिरे और बाँटने वाले और लेने वाले किसी को अपराध न
लगे
पुनः ख्यामा के साथ
सभी सज्जन को
| | जय श्री कृष्णा | |
Friday, March 21, 2014
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