Tuesday, June 25, 2013

राधा श्री राधा रटूं,निसि-निसि आठों याम।



जय श्री राधा कृष्ण
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राधा श्री राधा रटूं, निसि-निसि आठों याम।
जा उर श्री राधा बसै, सोइ हमारो धाम॥"

जब-जब इस धराधाम पर प्रभु अवतरित हुए हैं उनके साथ साथ उनकी आह्लादिनी शक्ति भी उनके साथ ही रहीहैं।
स्वयं श्री भगवान ने श्री राधाजी से कहा है -
"हे राधे! जिस प्रकार तुम ब्रज में श्री राधिका रूप से रहती हो, उसी प्रकार क्षीरसागर में श्री महालक्ष्मी, ब्रह्मलोक में सरस्वती और कैलाश पर्वत पर श्री पार्वती के रूप में विराजमान हो।"
भगवान के दिव्य लीला विग्रहों का प्राकट्य ही वास्तव में अपनी आराध्या श्री राधा जू के निमित्त हीहुआ है। श्री राधा जू प्रेममयी हैं और भगवान श्री कृष्ण आनन्दमय हैं।
जहाँ आनन्द है वहीं प्रेम है और जहाँ प्रेम है वहीं आनन्द है।
 आनन्द-रस-सार का धनीभूत विग्रह स्वयं श्री कृष्ण हैं और प्रेम-रस-सार की धनीभूत श्री राधारानी हैं अत: श्री राधा रानी और श्री कृष्ण एक ही हैं।


श्रीमद्भागवत् में श्री राधा का नाम प्रकट रूप में नहीं आया है। किन्तु वह उसमें उसी प्रकार विद्यमान है जैसे शरीर में आत्मा।
प्रेम-रस-सार चिन्तामणि श्री राधा जी का अस्तित्व आनन्द-रस-सार श्री कृष्ण की दिव्य प्रेम लीला को प्रकट करता है।
जय श्री राधा कृष्ण



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